अक्तूबर 31, 2006

डॉ० कुँअर बेचैन जी का गज़ल संग्रहः कोई आवाज़ देता है



ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक

चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलो तक


प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर

ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक


प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली

कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक


घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी

ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक


माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी

मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक


मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा

बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक


हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन

मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक


डॉ० कुँअर बेचैन

डॉ० कुँअर बेचैन जी की ओर से सभी को दीपावली की शुभकामनायें



दूर तक जो दीखती हैं दीपमालाएं कुँअर

ये तिमिर के गेह में हैं ज्योति बालायें कुँअर

बातियों की बात सुन लें तो स्वयं खुल जायेंगी

सब के मन में प्रीत की शुभ पाठशालाएं कुँअर


डॉ० कुँअर बेचैन

अक्तूबर 30, 2006

एक गज़ल

अगर हम अपने दिल को अपना इक चाकर बना लेते
तो अपनी ज़िदंगी को और भी बेहतर बना लेते

ये काग़ज़ पर बनी चिड़िया भले ही उड़ नही पाती
मगर तुम कुछ तो उसके बाज़ुओं में पर बना लेते

अलग रहते हुए भी सबसे इतना दूर क्यों होते
अगर दिल में उठी दीवार में हम दर बना लेते

हमारा दिल जो नाज़ुक फूल था सबने मसल डाला
ज़माना कह रहा है दिल को हम पत्थर बना लेते

हम इतनी करके मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते

'कुँअर' कुछ लोग हैं जो अपने धड़ पर सर नहीं रखते
अगर झुकना नहीं होता तो वो भी सर बना लेते

डॉ० कुँअर बेचैन

अक्तूबर 17, 2006

गज़ल

सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर

दुनिया से लडना है तो
अपनी ओर निशाना कर

या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर

बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर

बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर

शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
डॉ० कुअँर बेचैन