दिसंबर 27, 2006

बेटियाँ


बेटियाँ-
शीतल हवाएँ हैं
जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं
ये तरल जल की परातें हैं
लाज़ की उज़ली कनातें हैं
है पिता का घर हृदय-जैसा
ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं
बेटियाँ -
पवन-ऋचाएँ हैं
बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं
हैं चपलता तरल पारे की
और दृढता ध्रुव-सितारे की
कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन
नाव हैं ये उस किनारे की
बेटियाँ-
ऐसी घटाएँ हैं
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं


Dr.Kunwar Bechain

22 टिप्‍पणियां:

अनूप भार्गव ने कहा…

वाह ! कितनी सरल और सुन्दर कविता है ।

बेनामी ने कहा…

बहुत-बहुत शुक्रिया अनूप जी।
कुँअर

बेनामी ने कहा…

बहुत, बहुत सुन्दर. सीधे दिल तक असर करने वाली

बेनामी ने कहा…

बहुत-बहुत शुक्रिया मैथिली जी ।
कुँअर

Mrityunjay Kumar Srivastava ने कहा…

Mai bchpan ko bula rhi thi ,meri bitiya bol pdi
subhdra kumari chaun ki upar ki es pankti aur kunwar ji ki pankti samvedna ki ghani chadar bunti hai.Es rachna ko pdhne ke bad aansoon ko apna dost mil gya hai.
mrityunjay k srivastava sadhak

बेनामी ने कहा…

भावनाओं से ओत-प्रोत, बड़े ही सुंदर ढंग से उजागर करती हुई, सुंदर शब्दों के सहारे प्रवाहमयी बहुत ही प्रभावशाली रचना है।

श्रद्धा जैन ने कहा…

वाह बहुत सुंदर कविता है
आप जैसे कवियों से ही तो आज कविता और एहसास ज़िंदा है

Sumit Pratap Singh ने कहा…

AAPKI YE JO KAVITAI...
APUN KO BADI BHAYI...
IS KAVITA KE LIYE BADHAI...

vipinkizindagi ने कहा…

बेटियाँ-
ऐसी घटाएँ हैं
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं.....


sir, behtarin bhi chota shbd hai...
dil ko chu gai yaha rachna....
main bhi gazal likhta hun, mere blog par bhi aaye..

Sumit Pratap Singh ने कहा…

जन्माष्टमी पर सब सुनेगे क्रंदन

जन्म लेंगे जब देवकी नंदन

गोपियों संग होगी रास लीला

यशोदा पुत्र का होगा अभिनन्दन

कवि छिप बैठे छज्जे से सटके

गुप-चुप माखन खायेंगे डटके।

आदरणीय कुंवर जी को
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

Sumit Pratap Singh ने कहा…

आदरणीय कुंवर जी!

सादर ब्लॉगस्ते!

कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।

वनिता ने कहा…

good.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

सरल सुन्दर चित्रण !

राजीव बाजपेयी ने कहा…

अतिसुन्दर चित्रण

Narendra Vyas ने कहा…

प्रथमत: प्रणाम श्रद्धेय श्री कुंवर बेचैन जी

आपकी इस रचना ने तो सच में इतना भावुक कर दिया कि ..बस...नि:शब्‍द। सच में बेहद सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।। बधाई और बेहद आभार ।। सादर वन्‍दे।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

डॉ.बेचैन साहब,
नमस्कारम्‌!

बहुत प्यारी रचना है यह...प्यारी ‘बिटिया’-सी प्यारी...हार्दिक बधाई! यह रचना मैंने पहले भी कहीं पढ़ी है...अच्छी रचनाएँ चाहे जितनी बार पढ़ी जाएँ, हर बार आनन्द देती हैं!

"बेटियाँ -
पवन-ऋचाएँ हैं"

इन पंक्तियों में ‘पावन’ की जगह ‘पवन’ टंकित हो गया है, हालाँकि सभी समझ ही लेंगे...तथापि यदि सुधार दें, तो बेहतर होगा।

धन्यवाद!

S k Srivastava ने कहा…

Respected Kunwar ji

kabhi kabhi kisi bat ko sirf kah dena bada aasan hota hai,parantu usi roop me aatmsat kar lena ye iswar ki krupa hi hai.aapki is anuthi kavita ke liya hardik abhinandan.jo log ise aatmsat kare unka banadan.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेटियाँ-
ऐसी घटाएँ हैं
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं


बहुत ही गहरे अर्थ लिए पंक्तियाँ।

सादर

Dr. Vandana Sharma ने कहा…

यह विचार यदि संपूर्ण भारतवर्ष में हो, तोः कितना अच्छा हो.

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी रचना....

रेणु ने कहा…

आदरणीय कुंवर जी बहुत भाव - भीने शब्दों में बेटियों का मान बढ़ाया है ------ बहुत हृदय स्पर्शी लिखा आपने | बहुत शुभकामना -

शुभा ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना।