सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर
दुनिया से लडना है तो
अपनी ओर निशाना कर
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर
बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर
बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर
शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
डॉ० कुअँर बेचैन
8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर गज़ल हैं, डॉक्टर साहब.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
-समीर लाल
वाह ! कितनी सुन्दर गज़ल है ।
कुँवर जी की और कविताओं का इन्तज़ार रहेगा ।
धन्य भाग्य!
आशा है आगे से और रचनायें यहाँ पढ़ने को मिलेंगी।
बहुत ही सुन्दर !! अब डॉ॰ कुँवर बेचैन जी अपनी अन्य कविताएँ भी यहाँ दे सकेंगे। पिछले दिनों कुँवर जी की कविताएँ बी.बी.सी. पर भी देखीं ..... डॉ॰ व्योम
समीर जी, अनूप जी, अनुराग जी, और व्योम जी आप सबका बेचैन जी की ओर से शुक्रिया। ये सच है कि कुछ न कुछ नया आप सबको पढने को मिलता रहेगा।
KUNVAR JI KI RACHNA KO PADNE KA KOI BAHANA KAR...
JO ISSE SEEKH MILE USKO MAN ME THANA KAR...
सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर
खूब
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर
बहुत खूब!! आदरणीय कुँअर बैचैन जी! एकदम से आपका ब्लॉग मिला। एकदम ख़ुशी होगयी। follow करना है पर कोई विकल्प नहीं दिखा रहा।
शुभकामनायें
सादर गीतिका 'वेदिका'
एक टिप्पणी भेजें