कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई
डॉ० कुँअर बेचैन
9 टिप्पणियां:
aderniy kunwar sahab
namaskar
mai to jitni bhi tarif karun kam hai. bahut sundar
bahut hi sundar
kusum sinha
Kusum ji bahut bahut dhnayvad.
Kunwar
आदरणीय कुंवर जी
आप की रचना पढने का यह अवसर मिला है, पहली बार.प्राण जी की "मैं गज़ल कहता हूँ" में आपका परिचय पाया.यहाँ आपसे न मिल पाने का अफसोस रहा पर यह नियामत भी कोई कम नहीं.
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
सच को आइना क्या. मैं ही हू आइना, अक्स भी मैं !!
पाँव खुद ब खुद उठते जिधर है कोई
खामुशी मुझको बुलाती है जिधर है कोई
सादर देवी
आप की ग़ज़ल पढ़ी। निहायत खूबसूरत ग़ज़ल है और अंदाज़े-बयां, लफ़्ज़ों का चुनाव भी बहुत ख़ूबसूरत है। हिंदी ग़ज़ल में आप जैसे ही शब्दों के
धनी व्यक्तियों की ज़रूरत है जिससे ग़ज़ल के ब्लॉग लेखकों को पढ़ने और सीखने का मौक़ा मिले।
सादर
महावीर शर्मा
KUNWAR JI के सम्मुख प्रस्तुत है
#सुमित का तड़का#
ओलिम्पिक में बना फ़साना
बिंद्रा का क्या लगा निशाना
स्वर्ण पदक मिला देश को
खुशी से झूमे कवि दीवाना
मन में जागी यही ललक
भारत जीते ढेरों पदक।
वाह बेचैन साहेब.. आपने बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही, मै आपकी ग़ज़ल को पढना काफी पहले से पसंद करता हू.. आज ही आपका ब्लॉग भी देखा तो काफी अच्छा लगा..!!
मै शौकिया ही लिखता हू.. पर कभी आपको वक़्त मिले तो मेरा मार्गदर्शन जरुर कीजियेगा..!
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई..!!
आपके रचाना संसार का आनेद तो यदा-कदा प्राप्त होता ही रहता है किसी न किसी माध्यम से, आपको समक्ष में सुनने का आनंद भी प्राप्त होता रहा। आपके लिखे किस किस शेर की तारीफ करूँ, संक्षिप्त में कहूँगा कि 'मेरा तो सर भी वहॉं तक नहीं पहुँच पाता, जहॉं कदम के निशॉं आप छोड़ आये हैं।'
तिलक राज कपूर
वर्ष 1969-70 की बात होगी, मुरैना मेले में एक मुखड़ा सुना था 'ललनहारी मॉंग रही लाल डिठौना' आज तक वह मधुर मुखड़ा कानों में गूँजता है। ऐसा ही एक गीत बिछिया का है।
अगर ठीक याद है तो यह गीत आपके हैं और इनके लिये मन आज भी बेकरार है।
अनुग्रह की प्रतीक्षा है।
तिलकराज कपूर
aap se jaisi ummeed ki jaati hai yah gazal bhi kunwar baicen ka dastkht hi hai
aabhar
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